लेखनी प्रतियोगिता -10-Apr-2024" ग़ज़ल "
ग़ज़ल
मिट्टी के खिलौने गरीबों की पहुंच से अब बाहर हो गए।
कह ने को धरती छोड़कर लोग चांद के खरीदार हो गए।।
कुर्सी की चाहत में मर्यादा और संस्कार तार- तार हो गए।
जो लगते थे दागी नेता वो ही अब गले का हार हो गए।।
चंद रुपयों की ख़ातिर दो भाइयों के आपसी रिश्तें रंजीदा हो गए।
रहते थे जो इक साथ उस घर के धीरे धीरे दो भाग हो गए।।
सुबह शाम वो किसी और की डी पी के दीवाने हो गए।
हम तो बस यूं ही बे-वजह सर-ए-राह बदनाम हो गए।।
मधु गुप्ता "अपराजिता"
Mohammed urooj khan
16-Apr-2024 11:28 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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Reyaan
11-Apr-2024 06:21 PM
Nice
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Shnaya
11-Apr-2024 04:31 PM
V nice
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